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कृष्णा सोबती के उपन्यासों में चित्रित आर्थिक समस्याएँ

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हिन्दी की सुविख्यात लेखिका कृष्णा सोबती जी ने अपने उपन्यासों में अधिकतर समाज के मध्यवर्ग को चित्रित किया है। जिसके अन्तर्गत उच्च मध्यवर्ग व मध्यवर्ग दोनों का ही समावेश है। मध्यवर्ग, अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए प्रयत्नशील और अपने मानसिक संघर्ष के साथ-साथ आर्थिक संघर्ष से भी जूझता है। उसकी आकांझाएँ उच्चवर्ग तक पहुँचने की होती है, जिसे पूरा करने के लिए वह हमेशा संघर्षरत है। संघर्ष का जन्म वैषम्य से होता है और वर्तमान सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक नीतियों में विषमता को अपने उपन्यासों में चित्रित किया है। कृष्णाजी ने ‘यारों के यार’ उपन्यास में आर्थिक समस्या का विवेचन हुआ है। मनुष्य को जीने के लिए पैसों की जरूरत होती है। पैसे के बिना कुछ नहीं होता। महँगाई इतनी बढ़ने के कारण अपनी रोजमर्रा की चीजों की पूर्ति भी ठीक ढंग से नहीं कर पा रहा था। इस उपन्यास में ‘भवानी प्रसाद’ गरीबी के कारण दुखी और नौकरी के लिए लाचार बने हुए थे। पैसे न होने के कारण लड़के की मृत्यु होती है। भवानी बाबू के जीवन में आर्थिक विपन्नता के कारण उनका जीवन दु:खमय बनता है। दूसरी ओर नौकरशाही दफ्तरी वातावरण इसमें अफसर दफ्तरों के मालिक है और दूसरी तरफ क्लर्कों की हालत दयनीय है। ‘ऐ लड़की’ उपन्यास में आर्थिक विषमता के कारण ससून को जिन्दगी भर कुँवारी रहना पड़ा। ‘डार से बिछुड़ी’ उपन्यास में पाशो, सम्पत्ति की अधिकारिणी नहीं बन सकी। इस उपन्यास में खासकर गाँव में रहने वाले लोगों की आर्थिक स्थिति का कोई स्पष्ट वर्णन नहीं किया है। ‘मित्रो मरजानी’ उपन्यास में ‘मित्रो’ विवाहित होकर भी, संयुक्त परिवार में आर्थिक कमी को पूर्ण करने के लिए हर रोज पर-पुरूष की शैय्या को शोभित करना चाहती है। हर रोज नये पुरूष से संबंध रखती है। अपने शरीर का सौदा करके पैसा कमाकार मौजमस्ती करती है और साथ ही पति को अर्थ की सहायता भी करती है। इसके परिणाम स्वरूप ‘मित्रो’ बदचलन औरत बन जाती है। आर्थिक समस्या ‘मित्रो’ के लिए अत्यधिक विकृति जनक बन जाती है। ‘दिलो-दानिश’ उपन्यास में भारतीय उच्च मध्यवर्ग और मध्यवर्ग का पारिवारिक जीवन के जटिल स्वरूप को दर्शाया है। आज के आधुनिक युग में सभी लोग वैयक्तिक स्वतंत्रता तथा व्यक्तिगत सुख पाने के लालच में पागल बनते जा रहे हैं। इससे पारिवारिक रिश्ते बिगड़ते जा रहे हैं। इस उपन्यास में वकील कृपानारायण उच्च मध्यवर्ग के श्रेणी में आते हैं। वह हवेली में जीवनयापन करते हुए ठाठ की जिन्दगी जीते हैं। वह दोहरी जिन्दगी जीता है। अत: वह आर्थिक दृष्टि से मजबूत है। इस उपन्यास में लेखिका ने दोहरे जिन्दगी व्यतीत करने वाला वकील कृपानारायण को दर्शाया है। ‘जिन्दगीनामा’ उपन्यास में पंजाब के अंचल की आर्थिक स्थिति को प्रस्तुत किया है। स्वाधीनता प्राप्ति के समय और इसके वर्षों बाद भी भारत की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ न हो पायीं। इस उपन्यास में उच्च और निम्न वर्ग, मध्यमवर्गीय किसानों और मजदूरों का विशेष वर्णन है। इसमें लेखिका ने पंजाब के अंचल में तत्कालीन आर्थिक विषमता को उजागर करने के लिए शाहों और जट्ट मजदूर, किसान और छोटे-छोटे रोजगार करनेवालों के बीच व्याप्त आर्थिक विषमता को आधार बनाया है। इस उपन्यास में नारियाँ भी चरखे चलाकर, सब्जी बेचकर, अमीरों के घर नौकरानी बनकर या पशुपालन कर अर्थाजन करती है। कृष्णाजी ने अपने उपन्यासों में विशेषकर आर्थिक भ्रष्टाचार का चित्रण किया है।
Title: कृष्णा सोबती के उपन्यासों में चित्रित आर्थिक समस्याएँ
Description:
हिन्दी की सुविख्यात लेखिका कृष्णा सोबती जी ने अपने उपन्यासों में अधिकतर समाज के मध्यवर्ग को चित्रित किया है। जिसके अन्तर्गत उच्च मध्यवर्ग व मध्यवर्ग दोनों का ही समावेश है। मध्यवर्ग, अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए प्रयत्नशील और अपने मानसिक संघर्ष के साथ-साथ आर्थिक संघर्ष से भी जूझता है। उसकी आकांझाएँ उच्चवर्ग तक पहुँचने की होती है, जिसे पूरा करने के लिए वह हमेशा संघर्षरत है। संघर्ष का जन्म वैषम्य से होता है और वर्तमान सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक नीतियों में विषमता को अपने उपन्यासों में चित्रित किया है। कृष्णाजी ने ‘यारों के यार’ उपन्यास में आर्थिक समस्या का विवेचन हुआ है। मनुष्य को जीने के लिए पैसों की जरूरत होती है। पैसे के बिना कुछ नहीं होता। महँगाई इतनी बढ़ने के कारण अपनी रोजमर्रा की चीजों की पूर्ति भी ठीक ढंग से नहीं कर पा रहा था। इस उपन्यास में ‘भवानी प्रसाद’ गरीबी के कारण दुखी और नौकरी के लिए लाचार बने हुए थे। पैसे न होने के कारण लड़के की मृत्यु होती है। भवानी बाबू के जीवन में आर्थिक विपन्नता के कारण उनका जीवन दु:खमय बनता है। दूसरी ओर नौकरशाही दफ्तरी वातावरण इसमें अफसर दफ्तरों के मालिक है और दूसरी तरफ क्लर्कों की हालत दयनीय है। ‘ऐ लड़की’ उपन्यास में आर्थिक विषमता के कारण ससून को जिन्दगी भर कुँवारी रहना पड़ा। ‘डार से बिछुड़ी’ उपन्यास में पाशो, सम्पत्ति की अधिकारिणी नहीं बन सकी। इस उपन्यास में खासकर गाँव में रहने वाले लोगों की आर्थिक स्थिति का कोई स्पष्ट वर्णन नहीं किया है। ‘मित्रो मरजानी’ उपन्यास में ‘मित्रो’ विवाहित होकर भी, संयुक्त परिवार में आर्थिक कमी को पूर्ण करने के लिए हर रोज पर-पुरूष की शैय्या को शोभित करना चाहती है। हर रोज नये पुरूष से संबंध रखती है। अपने शरीर का सौदा करके पैसा कमाकार मौजमस्ती करती है और साथ ही पति को अर्थ की सहायता भी करती है। इसके परिणाम स्वरूप ‘मित्रो’ बदचलन औरत बन जाती है। आर्थिक समस्या ‘मित्रो’ के लिए अत्यधिक विकृति जनक बन जाती है। ‘दिलो-दानिश’ उपन्यास में भारतीय उच्च मध्यवर्ग और मध्यवर्ग का पारिवारिक जीवन के जटिल स्वरूप को दर्शाया है। आज के आधुनिक युग में सभी लोग वैयक्तिक स्वतंत्रता तथा व्यक्तिगत सुख पाने के लालच में पागल बनते जा रहे हैं। इससे पारिवारिक रिश्ते बिगड़ते जा रहे हैं। इस उपन्यास में वकील कृपानारायण उच्च मध्यवर्ग के श्रेणी में आते हैं। वह हवेली में जीवनयापन करते हुए ठाठ की जिन्दगी जीते हैं। वह दोहरी जिन्दगी जीता है। अत: वह आर्थिक दृष्टि से मजबूत है। इस उपन्यास में लेखिका ने दोहरे जिन्दगी व्यतीत करने वाला वकील कृपानारायण को दर्शाया है। ‘जिन्दगीनामा’ उपन्यास में पंजाब के अंचल की आर्थिक स्थिति को प्रस्तुत किया है। स्वाधीनता प्राप्ति के समय और इसके वर्षों बाद भी भारत की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ न हो पायीं। इस उपन्यास में उच्च और निम्न वर्ग, मध्यमवर्गीय किसानों और मजदूरों का विशेष वर्णन है। इसमें लेखिका ने पंजाब के अंचल में तत्कालीन आर्थिक विषमता को उजागर करने के लिए शाहों और जट्ट मजदूर, किसान और छोटे-छोटे रोजगार करनेवालों के बीच व्याप्त आर्थिक विषमता को आधार बनाया है। इस उपन्यास में नारियाँ भी चरखे चलाकर, सब्जी बेचकर, अमीरों के घर नौकरानी बनकर या पशुपालन कर अर्थाजन करती है। कृष्णाजी ने अपने उपन्यासों में विशेषकर आर्थिक भ्रष्टाचार का चित्रण किया है।.

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